जिस सकून के लिये, पूरी जिंदगी दौड़ते रहे, वो तो हम कुवें की मेंड़ पर, कच्चे बर्तन में पके हुये भोजन में, और दोपहर की नीम की छांव की हवा में, उस 20 साल पुराने गांव में छोड़ आये है, जो हम उस सकून को आज बंद बोतल पानी, कुकर के भोजन और ए.सी. की हवा में ढूंढते है।

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