उम्मीदवार और मतदाता के बीच का सम्बन्ध अब वो नहीं रहा, जिसकी चर्चा हमारे पूर्वज किया करते थे, या जिनका जिक्र किताब में लिखा हुआ है, बल्कि अब हर कोई उम्मीदवार व मतदाता एक दूसरे को तसली पूर्वक विश्वास दिलाकर लूटना चाहता है, ये तो लोकतंत्र की परिभाषा न थी, अब समझ आता है कि मदरटेरेसा व लालबहादुर शास्त्री संग अब्दुल कलाम जैसे समाजसेवक नेता साइंटिस्ट क्यों विलुप्त हो गये है। Reeta Bhuiyar

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