वक्त भी अजीव हो गया है, अमीर का झूठ अब प्रसाद हो गया है, गरीब का सच आज नजरअंदाज हो गया है, हमने लिखना चाहा वर्तमान का सच, तो उस सच को भी आज झूठ बता दिया गया है। ✍️
बचपन मैं बढ़ाएं गया सच को भी आज झूठा कर दिया गया है,
सच बोलने पर ईनाम और झूठ बोलने पर सजा,
वो सच न सपने में दिखता है न हक़ीक़त में दिखता है, आज कुर्सियों का जोर है,✍️
वर्तमान में कुर्सी पर बैठाकर, कुर्सी सहित इंसान को जलाया जा रहा है, जलने वाला भी खुश है, और देखने वाला भी खुश है, हर कोई अपने नंबर आने का इंतिजार कर रहा है, ✍️
सब कुछ खत्म हो रहा है, फिर भी पता नहीं किस बात का घमंड हो रहा है,
राहों में काँटे बोकर अपने बच्चों का भविष्य तैयार किया जा रहा है।✍️
चले थे जो भी सच को बचाने उनका एक पैर जेल में तो एक पैर फाँसी के तख्त की ओर जा रहा है।✍️
बस समझ इतनी सी बची है कि अब
मेरे घर को जेल का आँगन
और घर का आंगन को अब श्मशान बनाया जा रहा है।
सोच लो एक बार फिर से अभी भी वक्त है , घर को घर और घर के आंगन को आँगन बनाये रखने का, ✍️
वो स्कूल की पाठशाला ही चर्च मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारा थी, हमने चर्च मंदिर मस्जित और गुरुद्वारा को स्कूल की पाठशाला समझ लिया,
बच्चों का अधिकार खत्म करके स्कूल की पाठशाला को ही धर्म का ताला लगा दिया।✍️
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