वर्तमान में तर्क करने पर पाबंदी लगा दी गई है, और ये जनता द्वारा "धर्म व जाति" में "ईमानदारी और सच्चाई" को नकारकर आस्था रखना का प्रमुख बड़ा कारण है, हम जहां एक ओर विज्ञान को अपनाते है, वही दुसरी और पखंडवाद व कर्मकाण्ड को स्वीकार करते है, जबकि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति का मन धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए, न कि जातिवादी या धर्मवादी, लेकिन वर्तमान में धार्मिक व जातिगत भेदभाव के साथ पार्टीवादी भेदभाव भी बढ़ा है, जिसके कारण भारत में असमान भावनाओं का विकास तेजी से हो रहा है, सोचनीय ये है, कि हम सब भारतीय होने के बावजूद आपस में इतनी नफरत कैसे कर सकते है,

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