वर्तमान में जिस तरह साहित्य व सामाजिकता को बदला गया, उससे लगता नहीं की आज सामाजिक सोच को साहित्य के साथ जोड़ा गया है, आज के रंग मंच में एक ही कलाकार को दिखाया जा रहा है, अन्य कलाकारों को छुपाया जा रहा है। लोकतंत्र का नारा देकर जनता की आवाज को कुचला जा रहा है, जिसको अपनाया जीवन के रूप में उसको दूषित कर नर्क बनाया जा रहा है। क्या इस तरह ही आने वाले पीढ़ी का भविष्य बनाया जा रहा।

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