सच तो ये है कि व्यक्ति के शाब्दिक विचार और व्यवहार में इतना अंतर हैं कि जनता को पता ही नहीं चलता की किस शब्द और लालच से उसके मत अधिकार को बदल दिया गया है, आज भी जनता के पास जाओ तो वो कहती है क्या लाए हो, और पार्टी के पास जाओ तो कहती है क्या है तुम्हारे पास, हर तरफ लूट का मंजर है, बस कौन किसको कितने अच्छी तरह से बेवकूफ बना सकता है, उसकी ही वकालत चल रही है, पता नहीं क्यों कोई नेता बनना चाहता है और क्यों नेता बनाना चाहता है, अबतक इतना दिखाई दिया है, हर कोई गुलाम बनाकर पद सम्मान देना चाहता है, जितना बड़ा चापलूस और गुलाम उतना ही बड़ा पद और सम्मान.. Reeta Bhuiyar

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