*"मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं, लेकिन कैसे"*✍️
*"मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं, लेकिन अपनी शिक्षा के लिए हमेशा लड़ती हूं, कभी सावत्री बाई फुले के रूप में, तो कभी मदर टेरेसा के रूप में, तो कभी झांसी की बाई के रूप में, तो कभी अहिल्याबाई के रूप में, जिसको हमेशा से नजर-अंदाज किया गया है"*✍️
*"मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन मुझको हमेशा रिसेप्शन काउंटर पर ही रखा गया है (स्वागत काउंटर)"*✍️
*"मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन मेरा बचपन हमेशा ही प्रेम के साथ भेदभाव से पला बड़ा होता है, जो मातापिता बेटी को चांद का टुकड़ा समझते है, वो एक परम्परा के लिए मुझको अपनो से अलग कर देते है"*✍️
*"मैं लड़की हूं,लड़ सकती हूं, मैं पढ़ लिख कर, रसोई, साफ सफाई, बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई, सास सुसर के साथ परिवार की सेवा और भलाई, करने के बाद भी मेरी न कोई वेतन, न मेरी कोई कमाई"*✍️
*"मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन अपने अधिकारों की वकालत अपनो से कैसे कर सकती हूं"*✍️
*"मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन बिना आरक्षण के सरपंच नहीं बन सकती हूं, कभी विधायक तो कभी सांसद अपने ही परिवारिक मत भेद में बनती हूं, लेकिन निष्पक्ष परिवारिक सोच के साथ कभी आगे नहीं बड़ सकती हूं"*✍️
*"मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन अपने परिवार के बिना कभी कोई निर्णय नहीं ले सकती हूं"*✍️
*"मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन आज भी निपक्षता के साथ चुनाव नहीं लड़ सकती हूं"*✍️
*"मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, लेकिन हजारों वर्षों से गुलामी के बंधन से छुटकारा नहीं पा सकती हूं, परम्परा को निभाने के चक्कर में, मुझको कभी अपनाया जाता है तो कभी पराया बताया जाता है, मैं भले ही भारत की प्रथम नागरिक बन जाऊ, लेकिन फिर भी मुझको महिला बताकर कमजोर समझा जाता है"*✍️
Reeta Bhuiyar जिला बिजनौर उप्र भारत
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