70 वर्षो से भारत की जनता स्वम निर्णय नहीं ले पा रही है, जनता को tv अखबार मीडिया पत्रिकारिता संवाद के माध्यम से जो दिखाया जाता है, जनता उस को ही सही मान लेती है, लेकिन सच तो आज भी गांव की उस चौखट पर कुछ और ही दिखता है, आज भी महापुरषों का नाम लेकर जनता का उल्लू बनाया जा रहा है, महापुरषों का किया हुआ काम खत्म किया जा रहा है, हर तरफ एक गुलाम दूसरे को गुलाम बनाने का काम कर रहा है, एक डरा हुआ व्यक्ति दूसरे को डरा रहा है, क्या ये ही भारत का लोकतंत्र है, समझना होगा, नहीं तो सत्य के लिए काम करने वालों को जेल में भेज दिया जाएगा, और डाकू और चोर देश का मालिक बन जायेगा।

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