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दुनिया योग और नफरत

आज हमारा देश योग दिवस मनाता है लेकिन आज से 30 वर्ष पूर्व सभी स्कुल में नैतिक शिक्षा की किताब होती थी, जो योग आज सिखाया जा रहा है, वो उस वक्त 5वी से 8वी कक्षा का बच्चा पूर्ण रूप से योग सीख लेता था, जिसे हम योग कह रहे है उसे उस वक्त आसन कहते थे, और सभी बच्चें आसन लगते थे, जिससे बच्चा स्वस्थ रहता था, यानि आप ये कह सकते है की इसको करने और सिखाने के किये कोई फ़ीस नहीं लगाती थी, लेकिन हमारे नेताओ और हमारे देश के ठेकेदारों ने पहले इसे समाप्त किया और लोग जब भूल गये तथा बीमार रहने लगे, तब हमारे देश के नेताओ और ठेकेदारों ने इसे पुनह व्यापर के रूप में इसे लागु करने का संकल्प लिया, जिसे लोगो से योग के नाम पर मोटी रकम ली जा सके, पहले सरकारी किताबे बंद कराई फिर उन्हीं किताबों को प्राइवेट में मान्यत देकर लोगो को बेच रहे है, पहले हमारी शिक्षा हमसे छिनी प्राइवेट स्कुलो को मान्यता देकर, अब हमारा स्वास्थ्य छिन रहे है योग को प्राइवेट मान्यता देकर, जबतक शिक्षा और योग पर व्यपार होता रहेगा, हमें कुछ नहीं मिलाने वाला केवल और केवल दुःख ही दुःख मिलेगे....


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