किताब को भी इंसान ही लिखता है, किताब को भी इंसान पढ़ता है, बस नजरिया बदल गया है
अब उस किताब को नष्ट कर इस किताब को लिखा जा रहा है, अब इंसान को मशीन बनाने का काम किया जा रहा है
बहुत हुआ शिक्षा का दौर अब अशिक्षित बनाने का काम किया जा रहा है,
जिनकी जिम्मेदारी थी इंसाफ करने की, अब उनके द्वारा ही इंसाफ को खत्म किया जा रहा है
दौर गुलामी का है गुलाम बनकर गुलाम बनाने का, कोई बात नहीं वो वक्त भी गुजर गया है, ये वक्त भी गुजर जायेगा
सर छोटूराम को गरीबों का मसीहा कहा जाता था, सर छोटूराम दीन दुखियों और गरीबों के बंधु, तथा किसानों के लिए मसीहा थे,
सर छोटूराम कहते थे कि -
"ए मेरे भोले किसान, मेरी दो बात मान ले- एक बोलना सीख ले, दूसरा दुश्मन को पहचानना सीख ले"
सर छोटू राम के परिनिर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन
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