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कभी हम अपनी सांसों से आने वाले अजनबियों को उनकी आहट से पहचान लिया करते थे, कभी हम देखकर अजनबीयों को

कभी हम अपनी सांसों से आने वाले अजनबियों को उनकी आहट से पहचान लिया करते थे,

कभी हम देखकर अजनबीयों को पहचान लिया करते थे, जब कभी पहचान न होती थी स्वयं की आंखों व सांसों से, तो हम अपनी आंखे और सांस को एक पल के लिए बंद कर अजनबियों को पहचान लिया करते थे... 

वर्तमान में तो छल कपट अपनो में इतना बढ़ गया है कि अजनबियों को तो क्या पहचाने गे, हम अपनो को ही पहचानने में धोखा खा रहे है...

                एडवोकेट रीता भुइयार

    नजीबाबाद जिला बिजनौर उप्र भारत 


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