संगीत को सुनने और सुनाने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं, संगीत के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं,
संगीत तो सभी को पसंद है, लेकिन कुछ चालाक व्यक्ति संगीत में भी जहर मिला रहे है, संगीत के माध्यम से नफरत फ़ैलाने का काम कर रहे है
संगीत में यदि शब्दों को न मिलाया जाए तो, संगीत की पहचान किसी धर्म जाति रंग रूप से नहीं की जा सकती है
संगीत बिल्कुल पानी और हवा की तरह है, पानी और हवा का कोई अपना रंग स्वाद नहीं होता है, वो स्वयं के रंग स्वाद में मिलकर अपने पहचान को छुपाता भी है और बताता भी है
बिल्कुल शिक्षा और खून की तरह, उसी प्रकार गलत और सही का आकलन करने के लिये पढ़ा लिखा होना जरुरी नहीं, अनपढ़ भी बता सकता है की क्या गलत हो रहा है क्या सही हो रहा है
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