आजादी की लड़ाई में देश के प्रत्येक बच्चे और बुजर्ग ने भाग लिया था, युवाओं ने स्वयं फांसी को चुना था, एक रंग जो खून का था वो हर किसी का बहा था, उस रंग को किसी धर्म या जाति का नाम नहीं दिया गया था, उस समय के बलिदान को याद किया जाए तो लगता है, कि फिर से एक बार हमको धर्मजाति रंग भाषा के नाम पर लड़कर आपस में नफरत फैलाकर, हमको गुलाम बनाया जा रहा है, क्या ये ही सपना था उन वीर जवानों का जिन्होंने अपने आपको भारतीय होने के लिए अपने प्राणों की भी आहुति दे डाली थी,
उन सभी वीर सपूतों को कोटि कोटि नमन
एड रीता भुइयार
नजीबाबाद जिला बिजनौर उप्र
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