एक किताब को लिखने के लिए जिस तरह एक एक शब्दों का चुनाव किया जाता है, उसके एक एक शब्दों के अर्थ को प्रस्तुत किया जाता है, उसी तरह खेत में एक एक बीज को बोन से पहले जिस तरह उस खेत को तैयार किया जाता है, ये किसी मजदूर या किसान से छुपा नहीं है, मजदूर किसान के जीवन में निरंतर अभ्यास ने मजदूर किसान को अपने काम में इतना नि:पूर्ण बना दिया है, कि वो जान बूझ कर भी गलती करें, तो गलती नहीं हो सकती। उसके लिए प्रत्येक पौधा अपने बच्चें की तरह होता है। उसी प्रकार एक दार्शनिक भी अपने शब्दों में अपने अनुभव को उतारता हुआ, किताब का निर्माण करता है। ओर किताब का अध्यन करने वाला उस भाव से आगे की खोज करता है। लेकिन वर्तमान परम्परा में तर्क लेखन पर जिस तरह मौखिक प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है, ये किसी से छुपा नहीं है।
#एक_कदम_संविधान_की_ओर
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