एक समय था जब गांव और शहर में किसी से डर नहीं लगता था, तब जंगल में जगली जानवरो से भी डर नहीं लगता था, उस वक्त का व्यक्ति दिन के समय में भी घड़ी की सुई की टिक टिक की आवाज सुन लिया करता था,
उस वक्त यदि जेब में पैसे नहीं होते थे, तब भी पेट की भूख के लिए खाना मिल जाया करता था, पानी पीने के लिए ये देखा जाता था की पानी ताजा है या दूषित, उस वक्त की हवा बिल्कुल शुद्ध थी, तक तम्बाकू के धुवें को भी पानी में भिगो कर उसका सेवन किया जाता था,
उस वक्त भोजन को बिना देखे उसकी खुसबू और स्वाद से पहचान लिया जाता था, तब चोपाल पर बैठकर सही और गलत का निर्णय लिया जाता था, उस वक्त गलत की जानकारी होने पर उसके सामने ही उसका विरोध किया जाता था,
उस वक्त जब बच्चे स्कूल जाते थे, और कोई बच्चा पढ़ता नही था, तो मातापिता अध्यापक से बोलते थे कि बच्चे की हड्डी हमारी मांस तुम्हारा,
वर्तमान कितना बदल गया है, नफरत का माहौल कितना बढ़ गया है, लालच में इंसान झूठ और सच के फर्क को ही भूल गया है, पता नहीं क्या बनना चाहता है, जो बन गया है उसका कर्तव्य निभाना भूल गया है, और अगले पद पाने के लालच में खुश रहना भूल गया है,
अनजाने में ही अपने और अपने परिवार मित्र देश दुनिया को खराब करने में सहायक होता जा रहा है....
आप अपनी सोच को फिर से एकांत में रहकर सुधार कर सकते हो.. एक बार पहल करके तो देखे..
ये जीवन अनमोल है इसको नफरत में बर्बाद न करें।
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