मुझको दस वर्ष में बस इतना ही समझ आया है कि आम जनता जिस कारण (व्यवस्था) से पीड़ित है उसको ही अनजाने में जनता के द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है, साथ ही अपने बच्चों को भी अनजाने में उस व्यवस्था के लिए ही प्रेरित किया जा रहा है,
एक उदाहरण से समझते है
जब बहुसंख्यक लोग अनपढ़ थे तब अपने खानपीन में प्लास्टिक का उपयोग नहीं करते थे, आज पढ़लिख कर स्वयं अपने खानपीन में जहर का उपयोग कर रहे है,
पहले प्रदूषण को ध्यान में रखकर स्वस्थ जीवन के लिए काम किया जाता था, वर्तमान में प्रदूषण को बढ़ावा देकर अच्छे जीवन का सपना दिखाया जा रहा है,
समझने के लिए इतना ही काफी है कि विज्ञान के छात्र को पाखण्डवाद में विलीन किया जा रहा है,
पूर्व में और वर्तमान में बस ये ही अंतर नजर आ गया है कि पूर्व में नेताओं अधिकारियों कर्मचारियों को गलत काम करते हुए डर लगता था, और वर्तमान में सही निर्णय लेने और सही आदेश जारी करने में डर लगता है,
पहले भ्रष्टाचार को खत्म कर इंसानियत को जिंदा रखने के लिए पुरुस्कार दिया जाता था,
अब तो सामाजिक संस्थाओं के नाम पर व्यापार किया जाने लगा है, और पार्टियों के नाम पर समझौता कर राजशाही को स्थापित किया जाने लगा है,
लोकतंत्र का मतलब अब चुनाव आयुक्त के नाम पर पहले से ही पद समझौता कर पांच वर्ष के लिए राजा बनने का काम किया जाने लगा है ।
रीता भुइयार (एडवोकेट)
(सामाजिक चिंतक)
नजीबाबाद जिला बिजनौर उप्र भारत
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