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नफरत पूर्व और वर्तमान में गैरबराबरी की थी, लेकिन जो बाबा सहाब का नाम लेकर आगे बढ़े क्या उनके अंदर गै

नफरत पूर्व और वर्तमान में गैरबराबरी की थी, लेकिन जो बाबा सहाब का नाम लेकर आगे बढ़े क्या उनके अंदर गैरबराबरी की नफरत नहीं है, क्या बाबा सहाब को मानने वाले राजाशाही को स्थापित करने का काम नहीं कर रहे है, क्या जनता आज भी शिक्षा को स्वीकार कर पाई है, या अभी भी शिक्षा पेट भरने का कोर्स है, जबकि बाबा सहाब ने शिक्षा को ज्ञान का प्रतीक बताया ही नहीं था बल्कि साबित भी किया था, 

लेकिन  वर्तमान के डॉक्टर इंजी अधिकारियों ने शिक्षा को केवल पूंजी कमाने का जरिया ही समझा, वर्तमान संस्थाओं के ऊंच पद अधिकारी लम्बे समय से बने चले आ रहे है, जब तक किसी की मृत्यु नहीं हो जाती है कोई पद छोड़ने को त्यार ही नहीं रहता है, उसके बाद भी पद उसके परिवार को ही मिल रहा है, आज भी शिक्षा बिक रही है और वोट दान में दिया जा रहा है, हमारी स्वयं की समझ गलत और सही को समझने में कमजोर हुई है, जिसका कारण स्वयं का लालच और मानसिक गुलामी के साथ कर्मकांड और पाखंडवाद परम्परो का बढ़ावा मिल रहा है, जिसका सीधा सा उदाहरण है जो बाबा सहाब की पूजा कर रहा है क्या वो बाबा सहाब का एक विचार भी स्वयं अपने हुए है, केवल अपने और दूसरों के साथ धोखा चल रहा है। यदि अच्छे बुरे की समझ पढ़ लिखकर भी नहीं आई तो वो अनपढ़ ही सही थे जो कम से कम अनपढ़ होकर गलत नीति का समर्थन तो नहीं करते थे, कहने को बहुत कुछ है लेकिन अब संगीत का दौर चल रहा है न की पढ़ने का .... लोग भले ही पढ़े लिखे हो लेकिन वास्तव में पढ़ना लिखना बंद कर दिया है, अब तो नकल भी करनी अच्छे तरीके से नही आती है, जब कम पढ़े लिखे हुआ करते थे तब एक एक बात को अच्छी तरह सुनते और समझते थे, अब हर कोई धोखा देकर आगे बढ़ना चाहता है, 

आप सभी को बाबा सहाब के जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई..


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